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नव आदमी / तरुण
Kavita Kosh से
सिर पर पिरेमिडी लम्बी चमकनी टोपी-
जिस पर चढ़कर लगा है फुँदना, कलगी,
जैसे वैदरकॉक!
हाथ में भोंपू-विज्ञापनी,
रूई के चकत्ते चिपके हैं बदन पर, चेहरे पर।
पीछे पूँछ उठी हुई हैं हैंडल-सी।
चेहरे पर मेक-अप-सफेद, लाल व काले पेंट का,
हाथ में मुखौटे हैं-बदल-बदल कर, चेहरे पर लगाने के;
कमर में क्षुद्र घंटिका-टुन्-टुन्-टुन् करती!
क्या मुद्राएँ हैं; और वाह, क्या यूनरिया लटके!
यह नहीं है कोई संस्था, संघ, मडल या अकादमी-
न अ-कविता, न एब्सर्ड कविता!
पेट-बजाऊ बहुरूपिया?- हर्गिज नहीं!
यह तो है-
भीड़ में खोया, वस्तु और शैली-गत अपनी
तुरन्त-पहचान बनाता-
कलाकुमार, बुद्धिजीवी
नव आदमी!
1982