भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नहीं हो सकती वह / सुरेन्द्र डी सोनी
Kavita Kosh से
कभी नहीं हो सकती वह
मात्र एक कलाकृति
नहीं हो सकती वह
एक पैंटिंग
एक मूर्ति
एक म्यूराल
या एक कविता मात्र
भले ही
नाप आए वह
दुनिया के
सारे समन्दरों को
यूरोप और अमेरिका भी
चाहे हो जाएँ
लट्टू
उसके ज्ञान, सौन्दर्य और यौवन पर
पुरस्कारों के ढेर
भले ही
दें उसे आश्वासन
अमरता का
जब तक
उसके पोर-पोर में
रची रहेगी
सोलह आने भारतीयता
जब तक
लिखती रहेंगी
उसकी अँगुलियाँ
कथाएँ
इस मिट्टी की
नहीं हो सकती वह
मात्र एक कलाकृति...
कभी नहीं !