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नाख़ुदा बन के या ख़ुदा होकर / रविकांत अनमोल

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नाख़ुदा बन के या ख़ुदा हो कर
अब मिलेगा वो जाने क्या हो कर

मैं तो मजबूर हूं कि इंसां हूं
तू है मजबूर क्यूं ख़ुदा हो कर

बोलने के हुनर की ताक़त को
जान पाओगे बे-सदा हो कर

ख़ुद को तुम क्यूं ख़ुदा समझते हो
मेरी कश्ती के नाख़ुदा हो कर

मैं हमेशा रहा हूं गर्दिश में
आब होकर कभी हवा हो कर

तुम ख़ुदा के लिए ठहर जाओ
क्या मिलेगा तुम्हें जुदा हो कर

तुझको हैरान करके रख दूंगा
मुझसे मिलना कभी मिरा हो कर