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नारा महज नारा है / विपिन चौधरी
Kavita Kosh से
‘दुनिया के मज़दूरों एक हो जाओ’
पर बोलने से पहने सोचना होगा
हमारी एकता में इतने बल हैं कि
उन बलों को निकालते-निकालते
हमारी पीठ साबुत नहीं बची
नारे का झंडा थमाने वाले खुद
कहीं बाद में जान पाए कि
एक होने के लिए
समय और साधन होने चाहिए
एक होना तो दूर
भूख प्यास से
हमारी मेहनतकश आबादी
आधी-अधूरी हो गई
अधूरों को तोड़ना कहीं आसान होता है
हम टूटे
भर-भर टूटे