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निरखि न्यौछावर प्रानपिरयारे / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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निरखि न्यौछावर प्रानपिरयारे॥
भाव प्रिया के परम मनोहर जग की बिधि तैं न्यारे।
पठई हुती स्वयं दूती, छिपि ठाढ़े एक किनारे॥
याकुल दसा देखि प्यारी की निज वियोग मन हारे।
निरखि नयन तैं भाव प्रिया के आँसू ढारत प्यारे॥
प्रिया-हृदय के भाव मधुरतम, सुचि, प्रिय, सुखमय सारे।
देखने कौं मन जग्यो मनोरथ नहीं टर्यौ सो टारे॥
देखि प्रिया कौ सुखमय मुख अब, छूटे प्रेम-ड्डुहारे।
पिय कौं सनमुख देखि सलज भये प्रिया-नयन अरुनारे॥