Last modified on 21 अप्रैल 2014, at 08:19

निरापद ढंग से / कुमार मुकुल

यह ऐसा समय है साथी
जब कोई कुछ नहीं कर रहा
सब कविता कर रहे
निरापद ढंग से
जैसे-कुत्तों से घिरा
अकेला कुत्ता
दिखलाता है दाँत
और सुरक्षित दूरी बनाता
निकल पाता है किसी तरह
कर रहे हैं क्रान्ति
कवि भी
कागज के प्रदेश में।