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निर्वासन / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता
Kavita Kosh से
मेरे मन में एक गाँव है
जहाँ मैं रोज़ कभी आम और कभी जामुन के पेड़ से गिरता हूँ,
जहाँ मैं इमली और शहतूत बटोरता हूँ
धूप में सुखाए कंडे रसोई में रखता हूँ
कटी घास में आटा मिलाकर सानी करता हूँ,
एक बीड़ी सुलगाकर जाता हूँ तारा हलवाई की दुकान पर
पाव भर बूँदी हनुमान्जी के लिए, पाव भर पेड़ा किसनजी के लिए
और छटाँक भर बताशे बच्चों के लिए लाता हूँ,
गाय दुहता हूँ
और ए.सी. चलाकर, टी.वी. बंदकर,
मोबाइल को चार्जर पर लगाता हूँ
और सुबह सात बजकर पंद्रह मिनट तक के लिए मर जाता हूँ।