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पथिक / भारत यायावर

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रात-रात भर

बदरा रोए

मन को भिंगोए

भर गया तन का

पोरम-पोर


बिजली चमके

राह में थमके

खोज रहे हो अपना छोर


कहाँ है जाना

कहाँ से आना

किससे बँधी है डोर


चलना-चलना

ज़रा न डरना

आएगी ही

कभी तो भोर


(रचनाकाल : 1988)