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पहने नये लिबास, नज़र आ रही ग़ज़ल / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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पहने नये लिबास, नज़र आ रही ग़ज़ल
बदले मिजाज़ खास, नज़र आ रही ग़ज़ल।

ख़ुशबू बिखेर, दे रही हर दर्द को सुकून
हर दिल के आस-पास, नज़र आ रही ग़ज़ल।

दिखती है देवदास को 'पारो' नई-नई
पारो को देवदास नज़र आ रही ग़ज़ल।

साक़ी, सुराही,जाम, जो इसमें तलाशते
उनको तनिक उदास, नज़र आ रही ग़ज़ल।

बूढ़े, जवां, हसीन , कलमकार, दिलजले
सबकी बुझाती प्यास, नज़र आ रही ग़ज़ल।

जिसमें भरा हो, शर्बते-दीदार यार का
चांदी का वो गिलास, नज़र आ रही ग़ज़ल।

ताज़ा-तरीन साज़, सजें जैसे दुल्हनें
'विश्वास' दिल शनास, नज़र आ रही ग़ज़ल।