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पहलोॅ अध्याय / गीता / कणीक

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॥पहलोॅ अध्याय॥

(पहलोॅ अध्याय के शुरूआत महाभारत के भीष्म पर्व के 23 सें लैकेॅ 40 अध्याय उद्यृत कौरव पाण्डवोॅ के युद्ध के प्रारंभिक काल से छै। दोन्हू दलोॅ के सेना आमने-सामने कुरूक्षेत्र तीथोॅ के मैदानी में डटलोॅ छै। अन्ध कुरूराज धृतराष्ट्र केॅ युद्ध काल के खिस्सा सुनै के मोॅन रहै। यही निमित्ती भगवान व्यास केॅ कृपा से संजय केॅ दिव्य दृष्टि मिललै, जेकरोॅ आधार पर वें कुरूराजोॅ केॅ युद्धोॅ के हाल सुनाना शुरू करलकै। वास्तव में संजय के मोंहों से ही सौंसे युद्ध वृतान्त के साथे-साथ कृष्ण-अर्जुन सम्बादोॅ के रूपोॅ में गीता भी निकललै जे धृतराष्ट्रोॅ केॅ सभ्भै से पैन्हें सुनै लेॅ मिललै। संजय के अनुसार युद्ध क्षेत्र में विपक्षी सेना के आकलन करै बख्ती अर्जुनोॅ केॅ मोहें-ममतां घेरी लेलकै। आपनोॅ सामनां युद्ध में उद्यत भीष्म, द्रोण, कृपाचायोॅ के साथे-साथ सभ्भे टा सगा-संबंधी केॅ देखी केॅ भगवान कृष्ण केॅ आपनोॅ अन्देशा जतावे लागलै कि वै गुरूजनों केॅ मारी केॅ पाप के भागी बनै लेॅ हौ नै चाहै छै। सांसारिक मोह के दुविधा में पड़ी केॅ वें धनुष-तीर राखी केॅ शोक-विषाद में पड़ी केॅ तखनी युद्ध-कर्तव्योॅ से भागेॅ लागलै जेकरा पहलोॅ अध्याय के रूप में अर्जुन द्वारा सेना निरीक्षण आरो अर्जुन विषाद-योग के नाम से उद्यृत करलोॅ गेलोॅ छै।)

धृतराष्ट्र पुछलकै हे संजय!
कुरूक्षेत्र-तीर्थ में की भेलै?
जहाँ पाण्डु-पुत्रोॅ से युद्ध करैलेॅ
हमरोॅ बेटा सभ गेलै?॥1॥

संजय बोललै हे महाराज! दुर्योधन गुरू के जाय निकट
बोलै, देखी बल सैन्योॅ केॅ, पाण्डव दल केॅ जे रहै विकट॥2॥

आचार्य, गम्हौॅ! महती सेनां, पाण्डव दल युद्धोॅ के हित
तोर्है शिष्यें-दु्रपदोॅ पुत्रें, निज बुद्धि करलकै सुसज्जित॥3॥

पाण्डव दल में कतेॅ योद्धा, छै भीम आरो अर्जुन नाखी
युयुधान, विराट औ’ द्रुपद, बीर सबकेॅ छै आपनोॅ ही साखी॥4॥

छै धृष्टकेतु आरो चेकितान, शैब्योॅ के साथें काशिराज
राजा पुरजित औ’ कुन्ती भोज, सभ प्रस्तुत छै निज सैन्य साज॥5॥

जहाँ युधामन्यु तंग उत्तमौज, द्रौपदी सुभद्रा केरोॅ पुत्र
सबके सब ही छै महारथी, जीतै के सबकेॅ अलग सूत्र॥6॥

हे श्रेष्ठ द्विजोत्तम! कृपा करी, हमरा है जल्दी बतलाभो
के के रथी छै हमरा साथें, हौ जोड़ोॅ के सभ गिनबाभौ॥7॥

छोॅ तोहें गुरू! छै भीष्म पितामह, आरो छै अभिजीत कर्ण
अश्वत्थामा, कुलगुरू कृपा, सोमदत्त-तनय आरो विकर्ण॥8॥

एकरोॅ अतिरिक्त छै आरो वीर, जानोॅ केॅ गमाबै लेॅ तैयार
अैलोॅ छै जे हमरे खातिर, लै अस्त्र-शस्त्र संग सैन्य भार॥9॥

हमरोॅ ताकत बेमाप सुरक्षित, खाली पितामह भीष्मोॅ सें
पांडव-दल ताकत केॅ छै भरोसोॅ, खाली एकटा भीम्है सें॥10॥

आचार्य! सभैॅ सभी मिली-जुली, पितामह केॅ ही अभिरक्षोॅ
जिनी नायक छैन्ह आपनोॅ दल के, मिली जुटोॅ सब्भे हुनखै पक्षों॥11॥

है सुनथैं भीष्में शंख बजाय केॅ, आपनोॅ खुशी जताय देलकै
हौ बृद्ध सिंह के गर्जन नें, कुरूक्षेत्र के धरा हिलाय देलकै॥12॥

शंखोॅ के ध्वनि के सं-संग, रणभेरी नगाड़ा सब बजलै
सब नाद-ध्वनि सें योद्धा के, उन्माद युद्ध लेली जगलै॥13॥

पाण्डव दल में रथ पर सबार, श्री कृष्ण जे कि अर्जुन साथैं
जेॅ स्वेत अश्वोॅ सें सुसज्जित, शंखोॅ केॅ फुंकलकै लै हाथेॅ॥14॥

केशव नें बजैलकै ‘पाँचजन्य’, अर्जुनें फुँकलकै ‘देवदत्त’
लै ‘पौन्ड्र’ बजैनेॅ भीमसेन, युद्धोॅ खातिर भेलै उन्मत्त॥15॥

कुन्ती के पुत्र युद्धिष्ठिर के, फिर बजलै शंख अनन्त-विजय
नकुलें-सहदेवें सुघोषोॅ, मणि-पुष्पक फूंकि करै जय जय॥16॥

फिन काशी राज के साथ, शिखण्डी महारथी के शंख बजलै
धृष्टद्युम्न सात्यकि अजय पुरूष, शंख अलग विराटोॅ के बजलै॥17॥

हे पृथ्वीपति! द्रौपदी के पुत्रें, नृपति द्रुपद के संग-संग
वै पुत्र सुभद्रा अभिमन्युं, अलग्है सें फुंकलकै आपनोॅ शंख॥18॥

वै हृदय-विदारक शंख नाद नें, दशोॅ दिशा थर्राय देलकै
सौंसे कुरूक्षेत्र के धरती साथैं, सरङोॅ भी दहलाय देलकै॥19॥

संजय बोललै हे राजन! कपिध्वज, रथारूढ़ अर्जुन तखनी
बोलेॅ लागलै यदुनन्दन सें, कौरव दल तरफें धनुष तनी॥20॥

दोन्हूं सेना के मध्य क्षेत्र, हे केशव! रथोॅ केॅ खाड़ोॅ कर्हौ
केकरा से लड़ना छै हमरा, है देखै खातिर नैन भर्हौ॥21-22॥

हम्में देखबै कि अंधराज, के पुत्रोॅ खातिर के अैलै?
केकरोॅ ठो जान भेलै भारी, केकरोॅ ठो पापे डिडियैलै॥23॥

बोललै संजय हे भरतपुत्र! अर्जुन बातोॅ पर गौर करी
भगवान कृष्ण ने रथ खाड़ोॅ, रणक्षेत्र मध्य में जाय धरी॥24॥

जहाँ भीष्म, द्रोण के साथ-साथ, कुरू सेनानी सभ टा छेलै
हृषिकेशें अर्जुन केॅ देखलाबैॅ, खातिर जग्घोॅ लै गेलै॥25॥

अर्जुनें गमलकै दोन्हूं पक्ष के, मध्य क्षेत्र सें सेना केॅ
जहाँ पिता, पितामह, गुरू, मित्र, संग जमघट मामा नाना के॥26॥

सब ससुर, सार, पोता, भैगना, भाय आरो भतीजा देखी केॅ
अर्जुन हहरैलै सखा बन्धु के, जेरोॅ सम्मुख लेखी केॅ॥27॥

बोललै अर्जुन, सभ आपन्है, इच्छा कृष्ण पहुंचलै भ्ड़िबै लेॅ?
सब के सभ तेॅ आपने लागै, केकरा से भिड़बै-लड़बै ले?॥28॥

सौं से शरीर कांपै थर-थर मुँह सुक्खी मन अकुलावै छेॅ
रोइयाँ खाढ़ोॅ आरो अंग शिथिल, गाण्डीव हाथें छिटकावै छेॅ॥29-30॥

अब खड़ा रहै के दम्म नैं छेॅ, सभ भूल भुलैय्या लागै छै
हे केशव! हमरा तेॅ सगरो, अकुशल-अनिष्ट देखावै छै॥31॥

हम्में नैं जानौं अपन्हैं केॅ मारै में हित केॅ भेंटै के
हे कृष्ण! नहीं कटियो इच्छा, जीतोॅ के खुशी समैटे के॥32॥

गुरू, पिता, पितामह, पुत्र ससुर, मामा पोता के मारी केॅ
आपनें ही सगा-संबंधी केॅ, सारा के साथ संहारी केॅ॥33॥

गोविन्द! कथी लेॅ तुच्छ राज, प्राप्ति लेॅ आपन्हैं में भिड़वै?
हे मधुसूदन! गुरू, पिता, पुत्र, मारै लेली रण में खिड़वै?॥34॥

है धरती तेॅ की चीज जनार्दन? तीन्हूं लोक के नैं छेॅ लोभ
हम्में आबेॅ नैं युद्ध करौं, है पाप पालि नैं करौ क्षोभ॥35॥

पापें हमारा निङली जैतै, पुज्योॅ पर पहलोॅ वार करौ
हे माधव! हमरा की भेटतै? कौरव दल मारी पाप वरौॅ॥36-37॥

कौरव केॅ तेॅ लोभें छुलकै, जे अन्हरोॅ बनी केॅ झगड़ै छै
हमरा सभ तेॅ ज्ञानी जन छी, तेॅ पापें कैन्हें रगड़ैं छै?॥38॥

कुल के नाशें नाशी देतै, कुल के धर्मोॅ केॅ हे भगवन!
होथै धर्मोॅ के नाश तुरत ऊपजेॅ, लागतै सगरो अधरम॥39-40॥

सगरोॅ डिड़ियला सें अधर्मे, वंश्है केॅ नष्ट करेॅ लागतै
कुल के नारी फिन बन पतिता, हे कृष्ण? वर्ण-संकर जैतै॥41॥

हौ संकर सें फिन नरक पनपतै, सगरोॅ कोलाहल मचतै
पुर्वज सभ केॅ कोय पिण्डदान, आरो तर्पण फेनू नैं देतै॥42॥

हौ कुलघाती परम्परा केॅ, नाशे ठो करै के ही रचतै
ओकरोॅ कुलद्रोही हरकत सें, फिन कोइयो पुन्न नहीं बचतै॥43॥

हौं परम्परा तोड़ै बाला ही, नरकोॅ के भागी बनतै
हे देवकी नन्दन! एकरा सें, बढ़ी आरो पापोॅ भी होतै?॥44-45॥

ओन्हों उत्तम रस्ता छोड़ी केॅ पाप बढ़ाबै काम करौं
एकरा से अच्छा कौरव से, मरणें ठो गछी केॅ स्वर्ग बरौ॥46॥

संजय बोललै कि हे राजन!
एतनैय्ये कही केॅ पार्थ वीर
रथ सें उतरी के शोक मग्न
होय, राखी देलकै धनुष-तीर॥47॥