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पहिली गवन के मोला देहरी बैठाये / छत्तीसगढ़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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पहिली गवन के मोला देहरी बैठाये
न रे सुआ हो छाँडि चले बनिजार
काकर संग खेलहूँ, काकर संग खाहूँ
काला राखों मन बांध, न रे सुआ हो
छाँडि चले बनिजार
खेलबे ननद संग सास संग खाबे
छोटका देवर मन बांध न रे सुआ हो
छाँडि चले बनिजार
पीवरा पात सन सासे डोकरिया
नन्द पठोहूँ ससुरार न रे सुआ हो
छोटका देवर मोर बेतवा सरीखे कइसे
राखों मन बांध न रे सुआ हो
छाँडि चले बनिजार ...
तोर अँगना म चौरा बंधा ले
कि तुलसा ल देबे लगाय
नित नित छुइबे नित नितं लीपबे
कि नित नित दियना जलाय
तुलसा के पेड़ ह हरियर हरियर
कि मोर नायक करथे बनिजार
जब मोर तुलसा के पेड़ झुर मुर जाही
कि मोर नायक गये रन जूझ न रे सुआ हो नायक