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पहिले से भीगा मन / शकुन्त माथुर
Kavita Kosh से
आज तो है हारा मन
चोट खाया मारा मन
चुप चुप सघन वन
बोझ भारी
दिखा कुछ कारगुजारी
सारा कुछ गोल-गोल
अब तो कुछ बोल मन
सभी कुछ रुका-रुका
मन तेरा थका-थका
चल-चल
पल-पल
कहाँ-कहाँ
तोड़ कर
जोड़ कर
पहुँच वहाँ
वहाँ, वहाँ
पहिले सा गीत बन
पहिले सा भीग मन