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पापा / अंजू शर्मा
Kavita Kosh से
उसके जन्म का कारण थे तुम,
पर रहे हमेशा परिणाम से बेखबर,
हर व्यस्त सड़क पर
ढूँढा नन्ही सी एक हथेली ने
तुम्हारी ऊँगली को,
उसकी ह़र उपलब्धि तलाशती रही
भीड़ में एक मुस्कुराता चेहरा,
पीठ पर एक खुरदरा पर स्नेहिल आशीष,
जीवन की घुमावदार पगडंडियों पर
जब भी पाया तुम्हारा साथ
सदा संकोच ने जकड लिए छोटे छोटे पांव,
फिर भी कल्पना की, माथे पर एक प्यार भरे चुम्बन
और एक आश्वासन से भरे स्पर्श की,
फिर भी तुम्हारी हर पीड़ा व्यथित करती है उसका मन
एक फ़ोन कॉल पर पिघलता है संबंधों के मध्य
पसरा हिमखंड,
और प्रेम के दो बोलों की बरसात
धो देती है जिन्दगी के कैनवास से
तमाम अनचाही यादें...पापा...