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पावन प्रतिज्ञा / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
चरखे चलाएंगे, बनाएंगे स्वेदशी सूत
कपड़े बुनाएंगे, जुलाहों को जिलाएंगे
चाहेंगे न चमक-दमक चिर चारुताई
अपने बनाए उर लाय अपनाएंगे
पाएंगे पवित्र परिधान, पाप होंगे दूर
जब परदेशी-वस्त्र ज्वाला में जलाएंगे
गज़ी तनज़ेब ही सी देगी ज़ेब तन पर
गाढ़े में त्रिशूल अब नैन-सुख पाएंगे