भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिताजी-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कितनी कम थीं
जरूरतें !

फ़टे कपड़ो में भी
जी लेते थे हम
सालों-साल
बिना नहाए
साबुन से !

कितनी आसानी से
बताते हैं पिताजी
बदहाली को
खुशहाली में
बदल कर !

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"