भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पीर तो हिम है पिघल जायेगी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
पीर तो हिम है पिघल जायेगी
फिर नयी धूप निकल आयेगी
दिन खिज़ा के भी बीत जायेंगे
फिर कली खुल के मुस्कुरायेगी
ख्वाब आंखों के सभी सच होंगे
जिंदगी गीत गुनगुनायेगी
जो बुझे दीप हैं जल जायेंगे
रौशनी खूब जगमगायेगी
भय किसी नाग का नहीं होगा
छू के चन्दन को हवा आयेगी
पावनी गन्ध हवन की हरसूं
हर दिशा इक ऋचा सुनायेगी
दीद होगी न अश्क़ से पुरनम
मुस्कुराहट करीब आयेगी