भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पुकारा हमको माँ ने आज / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: निरुपमा, करना मुझको क्षमा‍
»  पुकारा हमको माँ ने आज

आमरा मिलेछि आज मायेर डाके ।।
 

पुकारा हमको माँ ने आज, मिले हम जैसे भाई मिलें,
एक ही घर में रहकर अरे, पराए होकर कैसे रहें ।।
प्राण में आती यही पुकार, सुनाई पड़ता स्वर बस 'आ',
वही स्वर उठता है गम्भीर, पकड़ अब किसको कौन रखे ।।
जहाँ हम रहते उसमें सहज प्राण से प्राणों का बंधन,
प्राण लेते प्राणों को टान, जानते प्राणों का वेदन ।
मान-अपमान हुए सब लीन, गए नयनों के आँसू सूख,
हृदय में आशा जगी नवीन, देख भाई-भाई का मिलन ।
साधना हुई हमारी सफल, मिले हैं आकर दल के दल
चलो लड़को सब घर के आज, मिलो माँ से जाकर तुम
विकल ।।


मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल

('गीत पंचशती' में 'स्वदेश' के अन्तर्गत चौथी गीत-संख्या के रूप में संकलित)