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पुल / प्रत्यूष चन्द्र मिश्र
Kavita Kosh से
गाँव जाने वाली नदी पर
अब पुल बन गया है
बारहों मास चलती है गाड़ियाँ
किसी भी मौसम में कोई दिक़्क़त नहीं
खाई को पाट दिया है इस पुल ने
अब नदी के पानी को नहीं छूते हमारे पाँव
नाव की भी कोई ज़रूरत नहीं हमें
मछलियों घोंघों-केकड़ों को नहीं देख पाते हम
भीगे हुए बालू पर पानी की लकीर अब दूर का दृश्य है
पुल ने शहर के बिलकुल पास ला दिया है हमारे गाँव को
पुल ने दूर कर दिया है नदी से हमको