भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेंसिल-1 / जयंत परमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेंच पे बैठी
ब्ल्यू जींस वाली लड़की
पेंसिल छीलती है
और उसमें से
फूटता है इक काला फूल
पेंसिल लिखती है
काले-काले अक्षर
कोरे काग़ज़ पर
जैसे काली तितलियाँ!

पेंसिल लिखती है
सफ़ेद अक्षर
आसमान के कैनवस पर
जैसे सूरज चाँद सितारे!!

पेंसिल लिखती है
पंख सुनहरी
कायनात की बाँहों पर
जैसे लड़की के सपने!!!