भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पेड़-१ / ओम पुरोहित ‘कागद’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पेड़ !
अब तुम
एक मेज हो ।

अब तो तुम
रूप नहीं बद्ल सकते
नहीं ले सकते विस्तार
तो भी
हमें
डर क्यों है ?

हमारा डर
कहीं
तुम्हारा
फ़ल तो नहीं ?

अनुवाद-अंकिता पुरोहित "कागदांश"