भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पेड़ से / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
परांगमुख हो गया
पेड़ से टूटकर
पेड़ का पत्ता।
पाताल में
पैठता चला गया
पुरुषार्थी मेघों का
पुरातन
पराक्रमी यात्री।
देश में
तड़पती है
देश की राजनीति
कल्थे खाती--
मरती चली जाती।
जप और जाप से
जिन्दगी जिलाते हैं
काठ के उल्लू;
मरी राजनीति में
असफल घुघुआते हैं
काठ के उल्लू।
रचनाकाल: १७-०७-१९७७
जगजीवन राम के पार्टी परित्याग पर