भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रणय लहरियों में सुख मंथर / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
प्रणय लहरियों में सुख मंथर
बहे हृदय की तरी निरन्तर,
जीवन सिन्धु अपार!
इसका कहीं न ओर छोर रे,
यह अगाध है, तू विभोर रे,
वृथा विमर्ष विचार!
यौवन की ज्योत्स्ना में चंचल
प्रणय उर्मियों में बहता चल,
छोड़ मोह पतवार!
मधु ज्वाला से हृदय पात्र भर
चूम प्रेयसी के द्राक्षाधर,
डूबे या हो पार!