भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रमाणपत्र / निशांत
Kavita Kosh से
पिता जी पेंशन के लिए
जिंदा रहने का प्रमाणपत्र लेते रहे
जब तक जिंदा रहें
मैं जिंदा हूँ
इसे बतलाने के लिए
बार बार पॉकेट से निकालकर
दिखलाता हूँ अपना फोटो प्रमाणपत्र
सब मान लेते हैं-मैं जिंदा हूँ!
वहीँ हूँ, जो फोटो में हूँ!
रात के अकेले में
वह मेरे ऊपर शक करता है
मांगता है मुझ से
मेरे जिंदा होने का प्रमाणपत्र
मेरे मनुष्य होने का प्रमाणपत्र
वह कागज के टुकड़ों को नहीं मानता
मेरी नब्ज नहीं टटोलता
मेरा चेहरा भी नहीं देखता
वह हर रात सीधे मेरी आँखों में झाकता है और
हर रात मुझे मृत घोषित करता है।