भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रार्थना-घर / विजय गुप्त
Kavita Kosh से
टूट गया जीवन-समास
इष्ट हुए गौण
केवल वास्तु-शिल्प मुखर
प्रार्थनाओं की शाम
रक्त के तालाब में
डूब गई
वर्दियों के धुँधलके में
हमारा प्रार्थना-घर ।