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प्रेम में एक दिन / विमल कुमार
Kavita Kosh से
एक दिन था
तुमसे मिलने पर
कितना उत्साह
कितना उमंग
पर अब नहीं रहा
वह स्पन्दन
जबकि तुम बैठी हो
मेरे संग
एक दिन
तुमसे मिलने पर
मेरे जीवन में था
कितना उल्लास
पर आज छाया है
कितना गहरा विषाद
जब तुम बैठी हो मेरे पास
अटक गई है मेरे भीतर
मेरी ही साँस
एक दिन थी
तुम्हारे चेहरे पर
कितनी प्रसन्नता
कितनी ख़ुशी
अब है केवल उदासी
यह जो पल जीया था तुम्हारे साथ
अब क्यों हो गया बासी
जबकि वही हैं आँख
वही नाक, वही केश-राशि ।