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फल रही है बेईमानी शान से / ब्रह्मजीत गौतम
Kavita Kosh से
फल रही है बेईमानी शान से
जा रही ईमानदारी जान से
लोग यों कहने लगे हैं, आजकल
जी नहीं सकता कोई ईमान से
चढ़ गया फाँसी भरे-बाज़ार सच
घूमता है झूठ आनो-बान से
देख कर बेटी सयानी बाप का
रो उठा मन रुख़्सती के ध्यान से
इल्म की है क़द्र रत्ती-भर नहीं
काम होते हैं यहाँ पहचान से
धर्म से इंसान डरता थाकभी
धर्म डरता आज खुद इंसान से
‘जीत’ देखो बेबसी इस दौर की
न्याय बिकता कौड़ियों के मान से