भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फाग बरनन / रसलीन
Kavita Kosh से
फाग समय रसलीन बिचारि लला पिचकी तिय आवत लीनें।
आइ जबै दिढ़ ह्वै निकसी तब औचक चोट उरोजन कीनें।
लागत धार दोऊ कुच में सतराइ चितै उन बाल नवीनें।
झटाक दै तोर चटाक दै माल छटाक दै लाल के गाल में दीनें॥79॥