भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फागुन की हवाओं में / नीरजा हेमेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे घर से निकलने वाली
 सड़क अब
आम और महुए की गंध से
सराबोर होने लगी है
कोयल की कूक का अर्थ
अब मैं अच्छी तरह समझने लगी हूँ
नदी की लहरों में
 श्वेत बगुले
अपनी परछाँइयों को देखते हुए
 उड़ जातें हैं
फागुन की हवाओं में
 रंगों के साथ तुम्हारी
स्मृतियाँ भी
 घुलने लगी हैं।