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फिर मेरे दिल ने चोट खाई है / प्रमिल चन्द्र सरीन 'अंजान'

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फिर मेरे दिल ने चोट खाई है
उस सितमगर की याद आई है

गुल फसुर्दा कली मलूल-ओ-उदास
कैसे कह दें बहार आई है

साज़े दिल पर ही उम्र भर हम ने
दस्ताने-हयात गाई है

बे ख़बर है वो हाल से मेरे
और यहां लब पे जान आई है

कैसे शिकवा करें तेरे ग़म का
रौशनी इस से फ़न ने पाई है।