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फिर से खुला है आकाश / नीरज दइया
Kavita Kosh से
प्यासी थी तुम
बरसना था, बादल को
धीरे-धीरे,
वह बरस पड़ा
बरसरे-बरसते
आखिर फट गया।
ऐसे में
जो बना था
तुम्हारा सहारा
वह दया थी
नहीं था प्रेम तुम्हारा।
आंखें खोलो! देखो-
फिर से खुला है आकाश।