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फूल-3 / वेणु गोपाल
Kavita Kosh से
जड़ों तक पहुँचती हुई
एक आग होती है
और फूल होता है
सूरज को देखता हुआ
और सूरज होता है
फूल को देखता हुआ
और दोपहर होती है
इसलिए सारे रिश्ते
चरमराने लगते हैं
शाम होने में कई-कई
सदियाँ बाक़ी होती हैं
फिर भी
फूल
इन्तज़ार करता है
उसका
तब तक
इन्तज़ार
करता रहता है
जब तक
वह फूल
फूल रहता है
(रचनाकाल : 23.05.1979)