भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचे रहो / रघुवीर सहाय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हज़ार कई हज़ार हज़ारों मर गए भूख से
--ऐसा कहा
इतनी बड़ी संख्या बताई कि उतनी बड़ी
आड़ हो गई
कि कोई देख नहीं पाया कि मैं
उनमें नहीं था