भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चा देखता है / अर्चना भैंसारे
Kavita Kosh से
बच्चा देखता है
सपने में रोटी
टपकने लगती है उसकी लार
पेट की अंतड़ियां टटोलता
निकल जाता है सड़क पर
बच्चा फैलाता है हथेली
ढूंढना है मिटती लाइनें
चमकने लगता उस पर सिक्का
बच्चा देखता है
आश्चर्य से...!