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बटखरे / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
एक धरती, एक आकाश
हम साथ-साथ
एक दूसरे को
तराजू के पलड़े पर तौलते हुए
बिस्तर पर करवट बदलती ज़िन्दगियां
बटखरों की तरह
बंटे खानों में सजा कर
रख दी गई हों
नेपथ्य में
कभी न दिखाई जाने वाली
नुमाइश की तरह।