भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बड़े ताजिरों की सताई हुई / बशीर बद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़े ताजिरों की सताई हुई
ये दुनिया दुल्हन है जलाई हुई

भरी दोपहर का खिला फूल है
पसीने में लड़की नहाई हुई

किरण फूल की पत्तियों में दबी
हंसी उसके होंठो पे आई हुई

वो चेहरा किताबी रहा सामने
बहुत ख़ूबसूरत पढ़ाई हुई

ख़ुशी हम ग़रीबों की क्या है मियां
मज़ारों पे चादर चढ़ाई हुई

उदासी बिछी है बड़ी दूर तक
बहारों की बेटी परायी हुई