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बड़े दिनों बाद / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
बड़े दिनों बाद खिला
गमले में फूल ।
रंग भरे मन में
उम्मीद नई जागी
बैठी थी अब तक
उदासी जो, भागी
चलो, किसी तरह झड़ी
जमी हुई धूल ।
चिड़िया ने कंठ खोल
ख़ूब चहचहाया
सन्नाटा देखता रहा
सकपकाया
चौकन्नी धूप
गई पर्दे पर झूल ।
बड़े दिनों बाद खिला
गमले में फूल ।