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बरसइ हे मेघ रे! / जयराम दरवेशपुरी

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लपसल हइ बदरा
बरसइ हे मेघ रे

थिरक थिरक बगिया में
नाचइ पुरबइया
भारि गेल नदिया आउ
सूखल तलइया
धरती सोहागिन के
पूर भेलइ नेग रे

साथ बेयाना लेले
बदरा उमतइलइ
सवना भादोइया के
जुआनी गदरलइ
एसों हइ पानी के जोग रे

गरज-गरज बदरा
बरसावइ पानी
परकिरती ठाढ़ा होइ
करबइ किसानी
रोपनी के गूंजतगन
टिस्स-टिस्स रेघ रे।