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बरसात-1 / जगदीश चतुर्वेदी
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बादलों के झुरमुट
मुझे अच्छे नहीं लगते
सड़कों पर रेंगती हैं चेहरा छिपाए युवतियाँ
मर्द फ़ौजियों की तरह कनटोप चढ़ाए
और मुझे
अपना छोटा-सा गाँव याद आता है
जहाँ मेरी पत्नी मेरा इन्तज़ार कर रही होगी ।