बहिष्कारवाद / देवेन्द्र आर्य
प्रणाली हम बदल नहीं सकते
टैक्स दाता होने से बच नहीं सकते
संविधान लागू करा नहीं सकते
सड़क पर संसद लगा नहीं सकते
न्यायालय पर नियंत्रण रोक नहीं सकते
समानान्तर मीडिया खड़ा नहीं कर सकते
झूठ का कारख़ाना खोल नहीं सकते
साँझा चूल्हा जला नहीं सकते
फिर कर क्या सकते हैं हम ?
घर में घुसकर मारने की नीति तो अपना सकते हैं
दीपक न सही दीमक बन घुसें
चाल डालें भीतर ही भीतर खोखला कर दें
उनकी यही रणनीति तो हमें अधमरा कर गई !
अपनी खिचड़ी अपनी आग
अपनी डफली अपना राग कब तक ?
शुद्धतावाद का आत्मसन्तुष्ट चोला कब उतारेंगे ?
वैचारिक अस्पृश्यता की अहमन्यता कब छोड़ेंगे ?
कब तक काजल की कोठरी का राग अलापते रहेंगे ?
जब पूरी तरह उखाड़ कर फेंक दिए जाएँगे, तब ?
जब खेल के बाहर हो जाएँगे, तब ?
जब इतिहास उजाड़ दिए जाएँगे, तब ?
भाषा की तरह संसदीय राजनीति भी
बिना मिलावट विकसित नहीं हो पाती पार्टनर !
अपनी ग़ैरत अपने ईमान अपनी विचारधारा पर
विश्वास नहीं क्या ?
कब तक छुईमुई बने रहेंगे ?
हम होंगे कामयाब, पर कब ?
होंगे कामयाब, पर कैसे ?