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बहुत दिनों बाद एक खिड़की / ब्रजेश कृष्ण
Kavita Kosh से
बहुत दिनों से अगर
बन्द हो खिड़की
तो मुश्किल से खुलती है खिड़की
मैं खोलता हूँ एक
खिड़की बहुत दिनों बाद
बहुत दिनों बाद देखता हूँ:
सामने जागी हुई सड़क
बस की प्रतीक्षा में अधीर स्त्री
धुंध में जाता हुआ बस्ता
ख़बरें बाँटता बेख़बर हॉकर
घूमकर लौटता प्रसन्न बूढ़ा
सब्जियों से लदा रिक्शा
सनीचरी माँगने निकल पड़ा जोगी
और खिड़की पर बैठा कबूतर का जोड़ा...
और भी बहुत कुछ
बहुत दिनों बाद
कूदता है घर में
धूप का खरगोश दिन भर
बहुत दिनों बाद
सिर्फ़ एक खिड़की खोलने से
बाहर औ भीतर
घटता है क्या कुछ
बहुत दिनों बाद!