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बहुत दूर तक देखा / किरण मल्होत्रा
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बहुत दूर तक देखा
सागर का किनारा
नज़र नहीं आया
सैकड़ों सफ़ेद लहरें थीं
नज़र नहीं आया
किस की तरह खिंची
चली जा रही थी
लहरें क्यूँ बढ़ी
चली आ रही थीं
कुछ भी पकड़ में
नहीं आया
सब जीवन-सा
रहस्यमय लगा
कठपुतली की तरह
जिसमें सब नाच रहे
लेकिन
डोर खींचने वाला
नज़र नहीं आया