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बाजै छै करकोइयां-ढोल / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'

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बाजै छै करकोइयां-ढोल
सत्ता के सब खुलते पोल।

भीतर-भीतर जहर करेला
ठोरोॅ पर मीट्ठोॅ ठो बोल।

तौलै छैं दुनियां, से ठिक्के
कभी काल अपनौ के तोल।

केन्हॉे छै तोशक केॅ जानेॅ
ऊपर सेॅ तेॅ बढ़िया खोल।

बोलै, सुग्गा राम-राम कह
तोड़ी केॅ ओकरोॅ ठो लोल।

मकड़ी के मन गदगद खुब्बे
लटकै छै सगरे ठां झोल।