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बारिश और सपने / योगेंद्र कृष्णा

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एक

सागर की लहरों पर

छलांग लगाता है एक लड़का

और लहर-संगीत से खुलती है

सागर-तट पर एक खिड़की

खिड़की के सामने खड़ी एक लड़की

कमरे के भीतर

भीगती है सागर पर गिरती बूंदों से

सराबोर भीगने का

सुख उसका अपना है

सागर-तट तक तिरती

लड़की की आंखों में

आतुर एक सपना है...

दो

छपाक-छपाक

पानी में दौड़ते हैं

बारिश में भीगते बच्चे

बड़ों में भी

भीगने का आनंद

बांटते हैं बच्चे...

सामने बुढ़िया की झोपड़ी है

झोपड़ी से दिखते हैं

बारिश में भीगते बच्चे

और झांकता है ऊपर से

खुला आसमान

झांझर है झोपड़ी

चूता है रात भर

झर-झर पानी

खाट पर खड़े-पड़े

भीगती है बुढ़िया

रात-रात भर भीगने का

दुख कभी

बांटती नहीं बुढ़िया

दुख उसका अपना है

हर बारिश में

दुख को सहलाता

जीवित एक सपना है...