भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बालक भीम तिसाया / दयाचंद मायना
Kavita Kosh से
बालक भीम तिसाया, खड्या मास्टर नै बोल दे
पानी पी लूं बाबू जी, नल की टूंटी खोल दे...टेक
मरण में कोए मिनट सै बाकी, सुणो पुकार गरीब की साखी
मनै सुण्या मनै सुण्या आंध्यां की माखी, राम झोलदे...
डूबगे, ब्राह्मण, क्षत्री, बणिया, बेसक मरता मरो मरणियां
माणस जुल्म करणियां, जहर अमृत मैं घोलदे...
बताओ वास राम का कित सै, पुतला हाड़ चाम का कित सै
म्हारे नाम का कित सै, बता कोटा कन्ट्रोल दे...
सबतै बुरी गरीबी हीणी, घूंट सबर की पड़ै सै पीणी
‘दयाचन्द’ बोलां की छीणी, पहाड़ पत्थर नै छोल दे...