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बाहर चुप है अन्दर चुप / विनोद तिवारी
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बाहर चुप है अन्दर चुप
धरती और समंदर चुप
शेख बिरहमन चीख़ रहे हैं
मस्जिद चुप है मन्दर चुप
शायद है बीमार मदारी
बैठे ताकें बन्दर चुप
ऐरे-ग़ैरे पाठ पड़ाते
ज्ञानी और धुरन्धर चुप