(राग माँड़-ताल कहरवा)
बिछुरन-मिलन सरीर कौ नित प्रारधाधीन।
मन कौं रखियै नित्य निज प्रियतम-स्मृतिमें लीन॥
मन कौ मिलन सदा सुखद, सहज, नित्य निर्बाध।
देश-काल के भेद बिनु पूरत मन की साध॥
भीड़-छीड़ होय, नगर-बन, घर या होय बाजार।
अंतर हिय उछरत रहत नित रस-पारावार॥
बूड़ौ चाहे अतल-तल, नाचौ होय तरंग।
एकमेक ह्वै रहौ सब, बाहर-भीतर अंग॥