भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बीमारी / मुइसेर येनिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने मुझे मारा
जैसे घूंसे बरसा रहे हो दीवार पर

स्त्री तुम्हारी गुफ़ा नहीं
कि जब मन करे
आकर लेट जाओ

तुम उस पर चढ़ नहीं सकते
गिलहरी की तरह

अपना अमृत नहीं
बल्कि अपना मूत्र
वह उड़ेलता है भीतर

वह प्रेम करता है
जैसे वह कोई दरख़्त हिला रहा हो

पुरुषत्व
एक गम्भीर बीमारी है ।