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बैठ कर दूर हो मुस्कुराते बहुत / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
बैठ कर दूर हो मुस्कुराते बहुत
हो हमेशा हमें याद आते बहुत
लोग कहते हैं मग़रूर उनको मगर
उनके अंदाज़ हम को सुहाते बहुत
इक घड़ी के लिये एक पल के लिये
ख़्वाब मासूम उन के सजाते बहुत
थीं तमन्ना रहें साथ हरदम मगर
पास आते नहीं दूर जाते बहुत
कह रहे जिंदगी में हैं मजबूरियाँ
वो हमेशा बहाने बनाते बहुत
थे गुज़ारे जो लम्हे कभी साथ में
बारहा हैं हमे याद आते बहुत
रूठना इस तरह क्यों तुम्हे भा गया
खुश रहो हम हैं आँसू बहाते बहुत