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भँवर में है कश्ती किनारे कहाँ हैं / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
भँवर में है कश्ती किनारे कहाँ हैं
ख़ुदा की क़सम वो हमारे कहाँ हैं
फ़जायें कहाँ हैं, बहारे कहाँ हैं
फ़िदा जिन पे दिल वो नज़ारे कहाँ हैं
बहुत दम अभी तक तो भरते रहे वो
ज़रूरत पड़ी तो सहारे कहाँ हैं
मुसाफ़िर समझकर हमें भूल जाना
किसी और के हम, तुम्हारे कहाँ हैं
उन्हीं की खुशी में हमारी खुशी है
गो जीते हैं हम पर वो हारे कहाँ हैं
हमारी नज़र बस उन्हें ढूंढ़ती है
बताओ कि आंखों के तारे कहाँ हैं
सरेआम का़तिल गुनहगार घूमें
दरोगा पुलिस अब वो सारे कहाँ हैं