Last modified on 16 मई 2010, at 20:37

भय / रघुवीर सहाय

कितनी सचमुच है यह स्त्री
कि एक बार इसके सारे बदन का एक व्यक्ति बन गया है
उसके बाल अब घने काले नहीं
दुख उसे केशों का नहीं है
वह उदास नहीं डरी हुई है अधेड़ है औरत है
सुन्दर है
होनी की तस्वीर एकदम उसके मन में चमक गई है इस क्षण
वह जवानी में बहुत कष्ट उठा चुकी है
अब वह थोड़े थोड़े लगातार स्नेह के बदले
एक पुरुष के आगे झुककर चलने को तैयार हो चुकी है
वह कुछ निर्दय पुरुषों को जानती है जिन्हें
उसका पति जानता है
और उसे विश्वास है कि उनसे वह पति के ही कारण
सुरक्षित है
वह हाथ रोककर एकटक देखती है हाथ
फिर पहले से धीमी कंघी को बालों में फेर ले जाती है उनके सिरे तक